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प्रेमानंद जी महाराज का प्रवचन: चिंता और भय से मुक्ति का मार्ग

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प्रेमानंद जी महाराज का प्रेरणादायक प्रवचन

Premanand Ji Maharaj Pravachan

Premanand Ji Maharaj Pravachan

प्रेमानंद जी महाराज का प्रवचन: प्रेमानंद जी महाराज ने अपने दैनिक प्रवचन में एक गहन और प्रेरणादायक संदेश साझा किया, जिसने भक्तों को जीवन की गहराइयों को समझने और आत्मबल को जागृत करने का अवसर प्रदान किया। प्रवचन का मुख्य संदेश था - 'घबराओ मत, शांत रहो और ध्यान से सुनो।' यह केवल शब्द नहीं थे, बल्कि आत्मनिरीक्षण और भय से मुक्ति का आह्वान था। आइए इस विशेष प्रवचन के महत्वपूर्ण संदेशों को विस्तार से समझते हैं -


शांति ही जीवन का आधार है घबराने की आवश्यकता नहीं

प्रेमानंद जी ने अपने प्रवचन की शुरुआत इस विचार से की कि घबराहट और चिंता किसी समस्या का समाधान नहीं हैं। उन्होंने कहा कि संकट के समय मनुष्य का स्वभाव विचलित होना है, लेकिन वही व्यक्ति आगे बढ़ता है जो अपने मन को स्थिर रखता है। यह आत्मिक बल प्राप्त करने का एक अभ्यास है। जब हम अपने मन को शांत रखते हैं, तभी सच्चे समाधान हमारे भीतर से प्रकट होते हैं। उन्होंने उदाहरण दिया कि जैसे गंदे पानी में नीचे बैठने पर ही गंदगी साफ दिखाई देती है, वैसे ही चिंताओं से भरे मन को शांत करने पर ही जीवन की दिशा स्पष्ट होती है।


गुरु की महिमा

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गुरु महिमा ही जीवन का सच्चा आलोक है

प्रेमानंद जी ने गुरु की महिमा को अत्यंत भावपूर्ण शब्दों में व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि यह संसार भटकाव से भरा है और बिना गुरु के हमारा जीवन एक दिशाहीन यात्रा बन जाता है। जैसे समुद्र में एक कुशल नाविक बिना दिशा सूचक के गुम हो सकता है, वैसे ही जीवन रूपी समुद्र में गुरु ही हमें पार लगाते हैं। गुरु की कृपा से ही हम आत्मज्ञान, भयमुक्ति और श्रद्धा की अनुभूति करते हैं। उन्होंने भक्तों से आग्रह किया कि वे अपने जीवन में गुरु के उपदेशों को केवल सुनें नहीं, बल्कि उसे अपने व्यवहार में लाएं।


आत्म-जागरूकता का महत्व चिंता और असुरक्षा से मुक्ति का मार्ग

प्रवचन का एक महत्वपूर्ण पक्ष यह था कि प्रेमानंद जी ने चिंता और असुरक्षा की मानसिक अवस्था को केवल एक बाहरी परिस्थिति नहीं बल्कि आंतरिक भ्रम बताया। उन्होंने कहा कि चिंता अतीत की उलझनों और भविष्य की आशंकाओं से उत्पन्न होती है, जबकि समाधान वर्तमान में स्थित होता है। जब हम ध्यान और साधना से अपने मन को वर्तमान में स्थिर करते हैं, तब चिंता की जड़ें स्वतः ही कट जाती हैं। महाराज जी ने समझाया कि जैसे दीवार पर पड़ी परछाई से डरना मूर्खता है, वैसे ही बिना विचार किए भय में जीना आत्मविनाश का मार्ग है।


सहज संवाद की शक्ति कथाओं और उपमाओं से संवाद

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अपने प्रवचन को सहज और प्रभावशाली बनाने के लिए महाराज जी ने कई कथाओं और उपमाओं का सहारा लिया। उन्होंने एक कथा सुनाई जिसमें एक व्यक्ति हमेशा दुखी रहता था, क्योंकि वह हर परिस्थिति में दोष ढूंढता था। एक दिन एक संत ने उसे शीशे और खिड़की के बीच का अंतर समझाया। शीशे में वह खुद को देखता था, लेकिन खिड़की से बाहर की दुनिया। इस कथा के माध्यम से प्रेमानंद जी ने यह बताया कि जब हम आत्मकेंद्रित होते हैं तो चिंता बढ़ती है। लेकिन जब हम सेवा और परोपकार में मन लगाते हैं, तब हमारे भीतर सच्ची शांति का उदय होता है।


व्यावहारिक उपायों की आवश्यकता शांति और ऊर्जा के लिए उपाय

प्रवचन केवल विचारों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि उन्होंने श्रोताओं को कुछ व्यावहारिक उपाय भी बताए। जिनसे वे दैनिक जीवन में स्थिरता और आनंद प्राप्त कर सकें। सबसे सरल और प्रभावी उपाय था नियमित मंत्र जाप, जैसे 'श्रीराधे श्रीराधे' का स्मरण, जो मन को एकाग्र करता है। इसके अलावा उन्होंने श्वास पर ध्यान केंद्रित करने की साधना का भी सुझाव दिया। यह अभ्यास न केवल मन को शांत करता है बल्कि शरीर में भी ऊर्जा का संचार करता है। उन्होंने भक्तों को सुबह उठते ही गुरु को स्मरण करने और दिन के कार्यों में सकारात्मकता लाने का मंत्र दिया।


एकांत और सामूहिक साधना का संतुलन साधना का महत्व

प्रेमानंद जी ने एकांत और समूह साधना दोनों की उपयोगिता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि एकांत हमें अपने भीतर झांकने का अवसर देता है। जहां हम अपने वास्तविक स्वरूप से मिलते हैं। वहीं समूह साधना हमें ऊर्जा और प्रेरणा देती है, क्योंकि सामूहिक चेतना से उत्पन्न शक्ति अनेक गुना बढ़ जाती है। उन्होंने भक्तों को प्रोत्साहित किया कि वे न केवल अपने लिए साधना करें, बल्कि अपने परिवार और समाज को भी इसमें सम्मिलित करें। जिससे एक सामूहिक आध्यात्मिक वातावरण बन सके।


शांति को अपनाएं भय को त्यागें

प्रेमानंद महाराज का यह प्रवचन केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि जीवन को गहराई से देखने और समझने का अवसर था। उन्होंने बताया कि भय, चिंता, असुरक्षा जैसे भाव केवल मानसिक आवरण हैं जिन्हें साधना, गुरु कृपा और आत्म-जागरूकता से हटाया जा सकता है। उन्होंने स्पष्ट किया कि जब हम शांति में स्थिर होते हैं, तब संसार की हलचल हमें विचलित नहीं कर सकती। उनका यह संदेश आज के तनावपूर्ण जीवन में एक दीपक की तरह है, जो अंधकार में भी प्रकाश देता है। ऐसे प्रवचनों का सार यही है कि हम जीवन के हर क्षण को सजगता, श्रद्धा, साहस और सकारात्मकता के साथ जीने की भरपूर कोशिश करें।


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